हम याद रक्खेंगे
मेरे वतन के लोग
कुझ ज़्यादा ही अजीब हैं
एक तरफ़ चाहवें हैं
की वतन सोने का हो
दूसरी तरफ़ ललसावें
—मंदिर राम का हो
मूर्ख ये नहीं समझते
सोने का गढ़ बनाना
शैव-भक्त रावण के बस में होवे है
राम के नाम पे तो
मंदिर ही बन सके है
बाक़ी हम पंजाबी तो ठहरे लड़की वाले
सीता हमरी बहन औ
लव-कुश हमरे लाल।
हम याद रक्खेंगे
हमरी लड़की को
घर से निकाला था
उसकी मुहब्बत
औ वफ़ा पे
शक्क किया था,
परखा था!
दर दर जंगल बेले भटकाया था
मरने के लिए छोड़ा था
वो बात अलग है की
वो आप ज़िन्दगी थी
अष्टावक्र के लाल जनक के
जिगर का टोटा,
सीता, सदा जीती रहेगी!