Hissa Daloge?

मैंने उनसे कहा की गुरुपरव है दसम गुरु का,
जिस के बग़ैर हिंद न होता हिंद जो है,
कि कुझ ख़ास कर रहां हूँ,
हिस्सा डालोगे?
उन्होंने झट्ट से पुछा की सियासी मुनाफ़ा क्या मिलेगा?

मैंने उन्हें कहा ग़र मुनाफ़ा देने की हमरी इच्छा न होती
तो आशीर्वादात्मक मस्ती में आता ही क्यों?
उन्होंने कहा यार से पूछो यार बिकेगा क्या?

मैंने कहा सियासी तवायफें हमरी यार नहीं
न सियासी दलाल बनना हमरी तनिक ईच्छा
हम अलविदा कह दिए —उठ, चल दिए!
उनका सौदा उनके पास हमरा, हमके पास!

साफ़ ज़ाहिर था उनकी ताबीयत देख कर
वो सोच रहे थे की कोई तो स्वार्थ होगा ये आये
औ हम कहे स्वार्थी निकले, एकदम बाकियों जैसे
देश यां लोक हित्त की बात न थी!

वही पुरानी बात
लोक सम्पत्ति जब सियासी ग़ुलाम बनी बैठी
उन्होंने अपना दफ़्तर जताया कहे हमें जानते हैं
हम भी जताये की ग़र जानते तो यूँ दूर न रहा करते!

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