इन्सान दलाल बन चूका
धरती जल औ अग्नि, वैश्या
ग़र मुझसे पूछो पैसा हवा न्यायी होवे तो भला
—सूर्य चंदा आकास अर्शी हैं, फर्शों से क्या वास्ता!
इन्सान दलाल बन चूका
धरती जल औ अग्नि, वैश्या
ग़र मुझसे पूछो पैसा हवा न्यायी होवे तो भला
—सूर्य चंदा आकास अर्शी हैं, फर्शों से क्या वास्ता!