आख़िरी दिन

जब मालूम हो जावे
आख़िरी दिन है
मुलाक़ात का
बातचीत का
दुखसुख मिल बाँटने का
जब ये न मालूम हो मगर
मुलाक़ात फिर होगी भी
तो कब, कहाँ
किस हाल में!

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